अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 1 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अपराध ही अपराध - भाग 24

    अध्याय 24   धना के ‘अपार्टमेंट’ के अंदर ड्र...

  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

श्रेणी
शेयर करे

अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 1

अंतर्मन अर्थात अपने मन की वो असीम गहराई जहां हित, नात , यार, मित्र, समाज, रिश्ते नाते, कार्य, प्रतिभा, विशेष कला, स्वार्थ, साम, दाम, लोभ, दंड, भेद इत्यादि सब से परे जा कर एकाग्रचित हो कर अपनी आत्मा से आत्म-साक्षात्कार करना या कहें खुद को खुद से जानना, यही है अंतर्मन।

मुझे महसूस हुआ पत्रिका या दैनंदिनी आप जो भी महसूस करें... तो अपनी आत्मा के भावों को मैं आदरणीय श्रद्धेय स्व. अटल जी की स्मृति को ध्यान मे रखते हुए इसे लिखना आरंभ करूंगा।

इसमे कई लेख मेरी डायरी से निकलेंगे या फिर नित नूतन विचार होंगे। मुझे मात्र आपका स्नेह और समीक्षा चाहिए यदि आपको सुलभ लगे।

तो अपनी पत्रिका /डायरी का आरंभ मैं अटल जी को समर्पित करते हुए लिखना चाहूँगा 🙏❤️❤️

"युग-पुरुष" भारतीय राजनीति के अजातशत्रु, भारत रत्न से विभूषित पूर्व प्रधानमंत्री कुशल वक्ता, परम श्रद्धेय स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी को भावभीनी आदरांजलि एवं कोटि-कोटि नमन।

🙏🏻🌺🌺🙏🏻




कृतज्ञ श्रद्धांजलि के रूप मे अटल जी को समर्पित सुशील कुमार शर्मा जी की एक कविता....

अटल मौन देखो हुआ, सन्नाटा सब ओर।
अंतिम यात्रा पर चले, भारत रत्न किशोर।

भारत का सौभाग्य है, मिला रत्न अनमोल।
अटल अमित अविचल सदा, शब्द शलाका बोल।

राजनीति में संत थे, राष्ट्रवाद सिरमौर।
शुचिता से जीवन जिया, बंद हुआ अब शोर।

धूमकेतु साहित्य के, राजनीति के संत।
अटल अचल अविराम थे, मेधा अमित अनंत।

देशप्रेम पहले रहा, बाकी उसके बाद।
जीवन को आहूत कर, किया देश आबाद।

वर्तमान परिपेक्ष्य में, प्रासंगिक है सोच।
राजनीति के आचरण, रहे न मन में मोच।

अंतर व्यथा को चीरकर, कविता लिखी अनेक।
संघर्षों संग रार कर, संयम अटल विवेक।

अंतिम यात्रा पर चले, दे भारत को आधार।
भारत तेरा ऋणी है, हे श्रद्धा के अवतार।

(कवि - सुशील कुमार शर्मा)


मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें

अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में पहली बार सांसद हो गए थे. तब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री हुआ करते थे। तब अटल को संसद में बोलने का बहुत वक़्त नहीं मिलता था, लेकिन अच्छी हिंदी से उन्होंने अपनी पहचान बना ली थी। नेहरू भी वाजपेयी की हिंदी से प्रभावित थे।

वह उनके सवालों का जवाब संसद में हिंदी में ही देते थे। विदेश नीति हमेशा उनका प्रिय विषय रहा। एक बार नेहरू ने जनसंघ की आलोचना की तो जवाब में अटल ने कहा, "मैं जानता हूं कि पंडित जी रोज़ शीर्षासन करते हैं। वह शीर्षासन करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें. इस बात पर नेहरू भी ठहाका मारकर हंस पड़े। "

"इस बारात के दूल्हा वीपी सिंह हैं "

वाजपेयी अपनी वाकपटुता से अनचाहे सवालों से बच निकलते थे। सन 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब कांग्रेस को 401 सीटों पर प्रचंड जीत मिली तो श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि ये लोकसभा नहीं, शोकसभा के चुनाव थे।

कांग्रेस इतनी मज़बूत दिख रही थी कि अगले चुनाव में कांग्रेस को हराने के लिए गठबंधन ज़रूरी था। वीपी सिंह भाजपा से गठबंधन नहीं चाहते थे, लेकिन कुछ मध्यस्थों के समझाने पर सीटों के समझौते के लिए राज़ी हो गए थे।

चुनाव प्रचार के दौरान ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जिसमें वाजपेयी जी और वीपी सिंह जी दोनों मौजूद थे, पत्रकार विजय त्रिवेदी ने वाजपेयी जी से पूछा, "चुनावों के बाद अगर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो क्या आप प्रधानमंत्री पद की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार होंगे?"

वाजपेयी जी थोड़ा मुस्कुराए और जवाब दिया, "इस बारात के दूल्हा वीपी सिंह हैं। "

"कश्मीर जैसा मसला है। "

1978 में वाजपेयी विदेश मंत्री के तौर पर चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की यात्रा करके लौटे थे। दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे चीन, वियतनाम, पाकिस्तान के कश्मीर प्रेम और दावे पर एक के बाद एक सवाल हो रहे थे। वाजपेयी मुस्कुराते हुए जवाब दे रहे थे। तभी युवा पत्रकार उदयन शर्मा ने अचानक एक सवाल पूछ लिया, "वाजपेयी जी, पाकिस्तान, कश्मीर और चीन की बात छोड़िए और ये बताइए कि मिसेज़ कौल का क्या मामला है?"

इस सवाल से अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सन्नाटा छा गया। सब वाजपेयी को देखने लगे। वाजपेयी ने मुंह को घुमाते-बनाते मुस्कुराती आंखों के साथ जवाब दिया, "कश्मीर जैसा मसला है। " एक हंसी के साथ माहौल सामान्य हो गया।

मैं किसी दलदल में नहीं हूं। मैं तो औरों के दलदल में अपना कमल खिलाता हूं। "

पत्रकार रजत शर्मा ने अपने टीवी शो आपकी अदालत में वाजपेयी से कहा, "सुनने में आता है कि बीजेपी में दो दल हैं। एक नरम दल है, एक गरम दल है। एक वाजपेयी का दल है और एक आडवाणी का दल है। " वाजपेयी ने जवाब दिया, "जी नहीं मैं किसी दलदल में नहीं हूं। मैं तो औरों के दलदल में अपना कमल खिलाता हूं। "

मैं अविवाहित हूं

वाजपेयी ने शादी नहीं की। हालांकि मिसेज कौल प्रधानमंत्री आवास में भी उनके साथ रहीं लेकिन पत्नी की हैसियत से नहीं। प्रधानमंत्री प्रोटोकॉल के हिसाब-किताब में उनका नाम नहीं था । वाजपेयी की आलोचना करने वाले नेताओं और दलों ने भी कभी इस निजी मसले को राजनीति के मैदान में नहीं घसीटा। यह प्रेम की एक ऐसी अलिखित कहानी थी, जिसे कोई नाम नहीं मिला।

शादी न करने पर वाजपेयी का यह जवाब बड़ा चर्चित है. उन्होंने कहा था, "मैं अविवाहित हूं…" फिर अपना चिर-परिचत विराम लेकर बोले, "लेकिन कुंवारा नहीं। "

एक पार्टी में एक महिला पत्रकार उनके कुंवारे रहने के रहस्य को लेकर उत्सुक थीं। बार-बार वो बहाने से उसी दिशा में बात का रुख़ मोड़ रही थीं। फिर उन्होंने सीधे ही पूछ लिया, "वाजपेयी जी आप अब तक कुंवारे क्यों हैं?"

वाजपेयी ने जवाब दिया, "आदर्श पत्नी की खोज में।" महिला पत्रकार ने फिर पूछा, "क्या वह मिली नहीं। " वाजपेयी ने थोड़ा रुककर कहा, "मिली तो थी लेकिन उसे भी आदर्श पति की तलाश थी। "

ईश्वर की मूर्ति पत्थर की क्यों होती है।

सत्तर के दशक में पुणे में वाजपेयी को एक सभा में तीन लाख रूपये भेंट किए जाने थे। इस राशि को मेहनत से जुटाने वाले कार्यकर्ताओं को एक-एक करके वाजपेयी को माला पहनाने का अवसर दिया गया।

बार-बार गले तक मालाएं भर जातीं तो वाजपेयी उन्हें उतार कर रख देते। जब भाषण देने लगे तो कहा, "अब समझ आया कि ईश्वर की मूर्ति पत्थर की क्यों होती है. ताकि वह भक्तों के प्यार के बोझ को सहन कर सके। "